"गांधीजी का ग्राम स्वराज एवं स्वावलंबन का आर्थिक मॉडल : स्वरूप, तत्त्व एवं आधुनिक प्रासंगिकता "

"गांधीजी का ग्राम स्वराज एवं स्वावलंबन का आर्थिक मॉडल : स्वरूप, तत्त्व एवं आधुनिक प्रासंगिकता "

✍️ —  प्रीति वैश्य(सहायक प्राध्यापक, अर्थशास्त्र विभाग,
PMCoE , शासकीय तुलसी महाविद्यालय अनूपपुर (म.प्र.)
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परिचय

भारतीय आर्थिक चिंतन का इतिहास केवल पश्चिमी सिद्धांतों का अनुकरण नहीं, बल्कि उन वैचारिक प्रवृत्तियों का भी साक्षी है जो नैतिकता, सामाजिक न्याय और आत्मनिर्भरता के आधार पर विकसित हुईं।इसी परंपरा में महात्मा गांधी का आर्थिक चिंतन एक विशिष्ट स्थान रखता है।

महात्मा गांधी केवल राजनीतिक नेता नहीं, बल्कि एक गंभीर आर्थिक चिंतक भी थे।उनके आर्थिक विचारों की जड़ें भारतीय संस्कृति, स्वदेशी, आत्मनिर्भरता और श्रम-सम्मान की परंपरा में निहित हैं।गांधीजी का “ग्राम स्वराज और स्वावलंबन” का मॉडल वास्तव में भारतीय आर्थिक विकास का नैतिक और मानवीय विकल्प प्रस्तुत करता है ,जो व्यक्ति, समाज और प्रकृति के बीच संतुलन की बात करता है।



1. ग्राम स्वराज की अवधारणा (Concept of Village Swaraj)

गांधीजी के अनुसार, “भारत का भविष्य उसके गांवों में बसता है।”उनका मानना था कि भारत की आत्मा उसके ग्राम्य जीवन में निहित है।इसलिए भारत की आर्थिक उन्नति का मार्ग गाँवों की आत्मनिर्भरता से होकर गुजरता है।

उन्होंने कहा —
“ग्राम स्वराज ऐसा समाज है जहाँ हर व्यक्ति स्वतंत्र हो,
परंतु सभी परस्पर सहयोग से जुड़े हों।”

गांधीजी का ग्राम स्वराज एवं स्वावलंबन का आर्थिक मॉडल
भारत की सामाजिक–सांस्कृतिक वास्तविकताओं से उत्पन्न एक मानव–केंद्रित विकास दृष्टि (Human-centric Development Approach) है, जिसमें आर्थिक स्वतंत्रता, नैतिक उत्पादन तथा सामुदायिक कल्याण की अवधारणाएँ परस्पर जुड़ी हुई हैं।
  
गांधीजी का मानना था कि ग्राम को इस प्रकार संगठित किया जाए कि वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति स्थानीय संसाधनों से कर सके और बाहरी निर्भरता न्यूनतम रहे। इस प्रकार, ग्राम स्वराज का स्वरूप आत्मनिर्भर, सहभागितापूर्ण और नैतिक समाज की परिकल्पना प्रस्तुत करता है।

2. स्वावलंबन का आर्थिक मॉडल (Economic Model of Self-Sufficiency)

गांधीजी का आर्थिक दृष्टिकोण विकेंद्रीकृत, श्रम–आधारित और नैतिक मूल्यों पर केंद्रित था। उनका स्वावलंबन मॉडल (Self-sufficient Village Economy) निम्न बिंदुओं पर आधारित था —

(A) ग्राम–आधारित उत्पादन प्रणाली (Village-Centric Production)

प्रत्येक ग्राम को कृषि, पशुपालन, कुटीर एवं हस्तशिल्प उद्योगों के माध्यम से अपनी उत्पादन–क्षमता विकसित करनी चाहिए। इससे न केवल ग्रामीण रोजगार का सृजन होता है, बल्कि आय का स्थानीय वितरण भी सुनिश्चित होता है।चरखा और  खादी आंदोलन इस मॉडल का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है, जिसने स्वदेशी और आत्मनिर्भरता दोनों का संदेश दिया।

(B) श्रम की प्रतिष्ठा और समानता
गांधीजी के अनुसार, “श्रम ही सच्चा धन है।”उन्होंने श्रम की गरिमा (Dignity of Labour) को आर्थिक व्यवस्था का आधार माना और कहा कि आर्थिक असमानता तभी घटेगी जब श्रम का सामाजिक मूल्य पुनः प्रतिष्ठित होगा।

(C) विकेंद्रीकृत उत्पादन प्रणाली
गांधीजी औद्योगिक केंद्रीकरण के विरोधी थे।उनका विश्वास था कि उत्पादन के साधनों का नियंत्रण स्थानीय समुदायों के हाथों में होना चाहिए,ताकि आर्थिक शक्ति समाज के निचले स्तरों तक पहुँचे।यह दृष्टि आधुनिक Participatory and Decentralized Economy की नींव है।

वे ऐसी अर्थव्यवस्था चाहते थे जिसमें उत्पादन के साधन गाँवों के पास हों,और “मानव का नहीं, मशीन का उपयोग सीमित हो।”


(D) नैतिक उपभोग (Moral Consumption)
गांधीजी का “साधन और साध्य की पवित्रता” का सिद्धांत अर्थशास्त्र में नैतिक उपभोग (Ethical Consumption) की अवधारणा से जुड़ता है। गांधीजी ने उपभोग को केवल आर्थिक क्रिया नहीं, बल्कि नैतिक उत्तरदायित्व के रूप में देखा।
उन्होंने कहा —
 “पृथ्वी सभी की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकती है, परंतु किसी एक व्यक्ति के लोभ की नहीं।”
यह कथन Sustainable Consumption की आधुनिक अवधारणा से पूर्णतः संगत है।

3. उदाहरण : खादी एवं ग्रामोद्योग

खादी एवं ग्रामोद्योग गांधीजी के स्वावलंबन सिद्धांत के व्यावहारिक रूप हैं। खादी केवल वस्त्र नहीं, बल्कि आर्थिक स्वतंत्रता, श्रम-सम्मान और स्वदेशी चेतना का प्रतीक थी।इसी प्रकार, ग्रामोद्योग (जैसे हस्तकरघा, तेल घानी, मधुमक्खी पालन, मिट्टी के बर्तन बनाना आदि)ग्राम रोजगार, पर्यावरण संरक्षण और सामुदायिक सहयोग का माध्यम बने।

4. वर्तमान समय में गांधीजी के मॉडल की प्रासंगिकता

21वीं सदी के वैश्विक आर्थिक परिप्रेक्ष्य में गांधीजी का ग्राम स्वराज मॉडल अत्यंत प्रासंगिक प्रतीत होता है। जहाँ एक ओर वैश्वीकरण और उपभोक्तावाद ने असमानता एवं पर्यावरण संकट को जन्म दिया है,वहीं गांधीजी का स्वावलंबन मॉडल सतत्, न्यायपूर्ण और समावेशी विकास का वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है।

(A) आत्मनिर्भर भारत अभियान
भारत सरकार का “आत्मनिर्भर भारत” कार्यक्रम गांधीजी के स्वावलंबन सिद्धांत का आधुनिक पुनर्पाठ है,
जो स्थानीय उत्पादन, सूक्ष्म–लघु–मध्यम उद्योगों (MSMEs) और “वोकल फॉर लोकल” को प्रोत्साहन देता है।

(B) सतत विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goals)
गांधीजी की संयमित उपभोग और पर्यावरण–संतुलन की धारणा आधुनिक SDGs से प्रतिध्वनित होती है, विशेषतः Responsible Consumption (SDG-12) और Sustainable Communities (SDG-11) से।

(C) विकेंद्रीकरण और समावेशी विकास
गांधीजी के विकेंद्रीकृत शासन और स्थानीय आत्मनिर्भरता के सिद्धांत आज के Panchayati Raj Institutions तथा Inclusive Growth Policies में प्रत्यक्ष रूप से परिलक्षित हैं।
साथ ही गांधीजी का “ग्रामीण उत्पादन आधारित विकास” आज “Local for Vocal” के रूप में पुनर्जीवित हुआ है।

(D) पर्यावरण संरक्षण और सरल जीवन
गांधीजी का “कम उपभोग, अधिक आत्मसंयम” आज Climate Change Mitigation की दिशा में एक वैकल्पिक जीवनशैली का संदेश देता है।

निष्कर्ष
गांधीजी का ग्राम स्वराज एवं स्वावलंबन का आर्थिक मॉडल केवल आर्थिक संगठन का खाका नहीं, बल्कि नैतिकता, श्रम–सम्मान और सामुदायिक सहयोग पर आधारित विकास का दर्शन है। उनके विचार हमें यह स्मरण कराते हैं कि —
 “विकास का उद्देश्य संपदा का संचय नहीं, बल्कि व्यक्ति और समाज के नैतिक उत्थान में निहित है।”

वर्तमान संदर्भ में, जब आर्थिक नीतियाँ बाज़ार–केन्द्रित होती जा रही हैं, गांधीजी का यह मॉडल हमें एक ऐसी लोक–केन्द्रित,आत्मनिर्भर और सतत् अर्थव्यवस्था की दिशा दिखाता है ,जहाँ आर्थिक प्रगति और मानवीय मूल्यों का संतुलन बना रहे।

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