दीपोत्सव 2025
दीपोत्सव 2025
अमित भूषण
आज जब आप अपने आंगन में एक छोटा सा दीपक जलाते हैं, तो यह केवल प्रकाश नहीं देता, बल्कि हजारों वर्षों की हमारी सांस्कृतिक यात्रा की कहानी सुनाता है। करीब तीन हजार वर्ष पहले, वैदिक ऋषियों ने प्रार्थना की थी — “तमसो मा ज्योतिर्गमय” — हमें अज्ञान से ज्ञान की ओर ले चलो। दीपक उसी आत्मिक प्रकाश का प्रतीक है।
इस दीपक ने उत्सव का रूप तब लिया जब भगवान श्रीराम चौदह वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे। पूरी नगरी दीपों से जगमगा उठी, जो अधर्म पर धर्म की और अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक था। यहीं से दीपावली पर्व आरंभ हुआ। लगभग पच्चीस सौ वर्ष पूर्व, भगवान बुद्ध ने इसे और गहराई दी, जब उन्होंने कहा — “अप्प दीपो भव” — अपने दीपक स्वयं बनो। यह आत्म-निर्भरता का संदेश था।
भक्तिकाल में संतों ने बाहरी दीपक को आंतरिक प्रकाश से जोड़ा। कबीर दास जी ने इसे आत्मा के ज्ञान का प्रतीक बताया, और गुरु नानक देव जी ने कहा कि ज्ञान का दीपक ही मन का अंधकार मिटाता है। आधुनिक कवियों ने इसे सामाजिक सद्भावना का प्रतीक माना।
इस दीपावली, हम तीन संकल्प लें: घर में दीपक जलाकर बाहर का अंधेरा दूर करें, ज्ञान और करुणा से अपने भीतर का प्रकाश जगाएं, और प्रेम तथा एकता से समाज को रोशन करें। दीपक की यह ज्योति हमें कल्याण, स्वास्थ्य और सद्भाव देती है।
"तमसो मा ज्योतिर्गमय" — अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ते रहिए। आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ। 🪔
Comments
Post a Comment