परेटो अनुकूलतम: कल्याणकारी अर्थशास्त्र की दृष्टि से भारत में इसकी प्रासंगिकता और सीमाएँ- प्रीति वैश्य*

परेटो अनुकूलतम: कल्याणकारी अर्थशास्त्र की दृष्टि से भारत में इसकी प्रासंगिकता और सीमाएँ

परिचय

आधुनिक अर्थशास्त्र में जब हम 'कल्याण' की बात करते हैं, तो केवल आर्थिक वृद्धि ही नहीं, बल्कि संसाधनों के न्यायपूर्ण वितरण और सामाजिक न्याय पर भी ज़ोर देते हैं। इसी संदर्भ में परेटो अनुकूलतम (Pareto Optimum) की अवधारणा एक महत्वपूर्ण सिद्धांत के रूप में सामने आती है, जो दक्षता का मापदंड प्रस्तुत करती है। यह सिद्धांत इटली के महान अर्थशास्त्री विलफ्रेडो परेटो द्वारा प्रतिपादित किया गया था। इस लेख में हम इस सिद्धांत की अवधारणा, विशेषताएँ, भारत में इसकी प्रासंगिकता और सीमाओं को उदाहरणों सहित समझेंगे।

1. परेटो अनुकूलतम की अवधारणा क्या है?

कल्याणवादी अर्थशास्त्र में परेटो अनुकूलतम (Pareto Optimum) की अवधारणा सामाजिक कल्याण के विश्लेषण में एक अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्धांत है। इसे Vilfredo Pareto नामक इटालियन अर्थशास्त्री ने प्रस्तुत किया था। नीचे इसका विस्तृत विवरण दिया गया है:

A. परेटो अनुकूलतम की परिभाषा:

परेटो अनुकूलतम (Pareto Optimum) वह स्थिति होती है जिसमें संसाधनों का ऐसा आवंटन होता है कि किसी एक व्यक्ति की स्थिति को बेहतर किए बिना किसी अन्य व्यक्ति की स्थिति को बेहतर नहीं किया जा सकता।

सरल शब्दों में:

संसाधनों का ऐसा वितरण जहाँ कोई किसी को नुकसान पहुँचाए बिना लाभ नहीं उठा सकता।

जब किसी भी परिवर्तन से किसी एक को लाभ होता है लेकिन किसी अन्य को हानि होती है, तो वह स्थिति परेटो कुशल (Pareto Efficient) नहीं होती।

उदाहरणार्थ : अगर दो व्यक्तियों के पास सेब और केला हैं और वे आपसी अदला-बदली करके संतुष्ट हो जाते हैं, और अब और किसी बदलाव से किसी की स्थिति सुधरती है तो दूसरे की बिगड़ जाती है – तो वह स्थिति परेटो कुशल मानी जाएगी।

B. परेटो अनुकूलतम की विशेषताएँ:

  •  दक्ष संसाधन आवंटन    -                    संसाधनों का उपयोग इस प्रकार होता है जिससे समाज में अधिकतम संतोष प्राप्त हो ।

  • लाभ-हानि संतुलन     -                            किसी को लाभ पहुँचाने के लिए किसी अन्य को हानि पहुँचाना पड़े, तो वह स्थिति परेटो अनुकूल नहीं मानी जाती ।

  •  मूल्य न्याय नहीं करता    -                          यह न्याय या समानता की बात नहीं करता, केवल दक्षता (Efficiency) पर ध्यान देता है।

  • सीमांत दर पर समानता    -              उपभोक्ताओं और उत्पादकों के बीच सीमांत लाभ और लागत की दरें संतुलन में होती हैं।

  •  आदर्श लेकिन अपूर्ण  -                              यह स्थिति आदर्श मानी जाती है, पर व्यवहार में इसे प्राप्त करना कठिन होता है।

C. परेटो कुशलता को प्राप्त करने की तीन स्थितियाँ (Conditions of Pareto Efficiency):

परेटो कुशलता प्राप्त करने की तीनों स्थितियाँ  का विश्लेषण करने के लिए हम तीन स्तरों पर विचार करते हैं: उपभोग, उत्पादन, और संसाधन आवंटन में दक्षता। 

1. उपभोग में दक्षता (Efficiency in Exchange)

जब दो या अधिक उपभोक्ताओं के बीच संसाधनों का ऐसा वितरण हो जाए कि कोई भी उपभोक्ता बिना दूसरे की स्थिति को खराब किए अपनी स्थिति में सुधार नहीं कर सके, तो यह उपभोग में परेटो कुशलता कहलाती है।

तकनीकी रूप में कहा जाए तो....जब दोनों उपभोक्ताओं की सीमांत प्रतिस्थापन दर (Marginal Rate of Substitution - MRS) समान हो:

MRS_A = MRS_B

उदाहरण:  माना दो व्यक्ति हैं – राम और श्याम, और उनके पास केवल दो वस्तुएँ हैं – सेब और केला।राम सेब को अधिक पसंद करता है, श्याम केले को।

प्रारंभ में राम के पास 5 सेब, 1 केला; श्याम के पास 1 सेब, 5 केले हैं।

अब यदि वे एक-दूसरे से वस्तुएँ इस प्रकार अदल-बदल करते हैं कि दोनों को ज्यादा संतोष मिले (जैसे राम श्याम को 2 सेब देकर 2 केले लेता है), और फिर किसी को बेहतर करने पर दूसरे की स्थिति बिगड़ने लगे, तो वहाँ परेटो कुशलता है।

2. उत्पादन में दक्षता (Efficiency in Production)

जब दो या अधिक वस्तुओं के उत्पादन में संसाधनों (जैसे श्रम, पूंजी) का ऐसा उपयोग हो जिससे किसी एक वस्तु का उत्पादन बढ़ाने के लिए दूसरी वस्तु के उत्पादन में कमी लानी पड़े, तो यह उत्पादन में परेटो दक्षता कहलाती है।

तकनीकी रूप:

जब दोनों उत्पादों की सीमांत तकनीकी प्रतिस्थापन दर (Marginal Rate of Technical Substitution - MRTS) समान हो:

MRTS_X = MRTS_Y

उदाहरण:   माना एक देश में केवल दो वस्तुएँ बनती हैं – कपड़ा और अनाज, और संसाधन सीमित हैं।यदि सभी संसाधनों को केवल कपड़ा बनाने में लगा दिया जाए, तो अनाज नहीं बनेगा।

अब अगर कुछ संसाधन अनाज उत्पादन में लगाए जाते हैं और कुल उत्पादकता बढ़ती है, तब तक परेटो सुधार संभव है।

लेकिन जब किसी और परिवर्तन से एक वस्तु की मात्रा बढ़ाने पर दूसरी की मात्रा कम होने लगे, तब उत्पादन परेटो कुशल हो जाता है।

3. उपभोग और उत्पादन का समन्वय (Efficiency in Product Mix)

जब उपभोक्ताओं की प्राथमिकताओं के अनुसार वही वस्तुएँ और उसी अनुपात में उत्पादित हो रही हों जिनकी उन्हें आवश्यकता है, तो यह उत्पादन और उपभोग में समन्वय की दक्षता कहलाती है।

तकनीकी रूप:

जब सीमांत दर प्रतिस्थापन (MRS) और सीमांत रूपांतरण दर (MRT) समान हों: MRS = MRT

उदाहरण:     यदि समाज की अधिकांश जनसंख्या को अनाज की आवश्यकता है लेकिन उत्पादन में कपड़े पर अधिक ज़ोर दिया जा रहा है, तो संसाधन कुशलता से प्रयुक्त नहीं हो रहे।

यदि सरकार उत्पादन नीति बदलकर अधिक अनाज उत्पादित करवाती है जिससे उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं की पूर्ति होती है, तथा कोई और सुधार संभव नहीं बचता, तो स्थिति परेटो कुशल मानी जाएगी।

अर्थात्... परेटो कुशलता केवल आर्थिक संसाधनों के पूर्ण उपयोग की बात नहीं करता, बल्कि यह भी देखता है कि वे संसाधन उपयुक्त व्यक्ति, उपयुक्त कार्य और उपयुक्त उद्देश्य के लिए उपयोग हो रहे हैं या नहीं।


D. आधुनिक भारत में परेटो अनुकूलतम की प्रासंगिकता

परेटो अनुकूलतम (Pareto Optimum) की अवधारणा भले ही एक सैद्धांतिक आर्थिक विचार हो, लेकिन आधुनिक भारत में इसकी प्रासंगिकता काफी गहरी और व्यापक है, विशेष रूप से नीति-निर्माण, सामाजिक न्याय, गरीबी-उन्मूलन, और संसाधनों के न्यायपूर्ण उपयोग में।

(i) सार्वजनिक नीति निर्माण में – "सबका साथ, सबका विकास" की भावना:

भारत में कई योजनाएँ ऐसी बनाई जाती हैं जो एक बड़े तबके को लाभ देती हैं, लेकिन किसी अन्य वर्ग को प्रत्यक्ष हानि नहीं पहुँचातीं।

उदाहरणार्थ - जनधन योजना: करोड़ों लोगों को बैंकिंग से जोड़ा गया, जिससे उनकी आर्थिक भागीदारी बढ़ी। इससे किसी और का नुकसान नहीं हुआ – यह एक परेटो सुधार (Pareto Improvement) है।

(ii) गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम:

यदि सरकार संसाधनों को इस प्रकार पुनः आवंटित करे कि गरीबों की स्थिति बेहतर हो, लेकिन किसी अमीर को प्रत्यक्ष हानि न हो (जैसे कि CSR का उपयोग), तो वह परेटो कुशलता की दिशा में कदम है।

उदाहरणार्थ - मनरेगा (MGNREGA): ग्रामीण मजदूरों को काम और आय मिली; वहीं सरकार का खर्च सामाजिक कल्याण में गया, किसी अन्य वर्ग को सीधी हानि नहीं हुई।

(iii) कर सुधार और सब्सिडी पुनःसंरचना:

भारत सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी को ज़रूरतमंदों तक लक्षित करना और गैर-ज़रूरी सब्सिडी को हटाना एक परेटो कुशल प्रक्रिया हो सकती है।

उदाहरणार्थ - रसोई गैस पर डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT): सब्सिडी सीधे गरीबों को मिली, और सरकार ने लीकेज बचाया। अन्य वर्गों को वस्तुतः कोई हानि नहीं।

(iv) शहरी नियोजन एवं बुनियादी ढाँचा विकास:

सड़क, मेट्रो, जलापूर्ति आदि योजनाएँ जहाँ अधिक लोगों को लाभ हो और किसी वर्ग को प्रत्यक्ष नुकसान न हो, वे परेटो सुधार की दृष्टि से उचित हैं।

उदाहरणार्थ - दिल्ली मेट्रो: लाखों यात्रियों को लाभ, प्रदूषण में कमी, निजी वाहन पर निर्भरता घटी – किसी वर्ग को हानि नहीं।

(v) शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार:

निःशुल्क या सब्सिडी वाली सेवाएँ (जैसे आयुष्मान भारत योजना) समाज के कमजोर वर्गों को लाभ देती हैं और किसी अन्य को नुकसान नहीं पहुँचातीं।

उदाहरणार्थ - आयुष्मान भारत: गरीबों को मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएँ; निजी अस्पतालों को सरकारी भुगतान मिला – सभी को लाभ।

E. परेटो अनुकूलतम की सीमाएँ – भारत की दृष्टि से:

परेटो अनुकूलतम (Pareto Optimum) यद्यपि आर्थिक दक्षता का एक अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्धांत है, लेकिन इसकी कई सीमाएँ (Limitations) हैं जो इसे व्यावहारिक रूप से अधूरा और सामाजिक न्याय की दृष्टि से अपूर्ण सिद्ध करती हैं। नीचे इसकी प्रमुख सीमाओं को विस्तृत रूप में समझाया गया है:

1. समानता (Equity) की उपेक्षा

समस्या:

परेटो कुशलता केवल दक्षता (Efficiency) की बात करता है, न्याय या समानता (Equity) की नहीं।

स्पष्टीकरण: अगर संसाधनों का वितरण असमान है – जैसे एक व्यक्ति के पास बहुत अधिक है और दूसरे के पास कुछ नहीं – तो भी यह वितरण परेटो कुशल हो सकता है यदि किसी की स्थिति बदले बिना किसी और को बेहतर नहीं किया जा सकता।

उदाहरण: यदि किसी अमीर के पास 10 रोटी हैं और गरीब के पास 1 भी नहीं, और रोटियाँ उसी के पास बनी रहें, तो स्थिति परेटो कुशल हो सकती है, लेकिन न्यायपूर्ण नहीं।

2. प्रारंभिक संसाधन वितरण पर निर्भरता

समस्या:

परेटो सिद्धांत यह मानता है कि प्रारंभिक संसाधनों का वितरण स्वीकार्य है।

स्पष्टीकरण: यदि शुरुआत में ही संसाधन अमीरों के पास हैं, तो कोई भी परेटो सुधार केवल उन्हीं के भीतर संभव होगा, और समाज में विषमता बनी रहेगी।

उदाहरण: अगर पूँजी केवल एक वर्ग के पास है, तो उत्पादन और निवेश उन्हीं के हित में होंगे – यह स्थिति परेटो कुशल हो सकती है, लेकिन गरीबों के लिए नुकसानदायक होगी।

3. वैकल्पिक स्थितियों की तुलना नहीं करता

समस्या:

परेटो सिद्धांत दो स्थितियों में कौन बेहतर है यह नहीं बताता, केवल यह बताता है कि एक सुधार संभव है या नहीं।

स्पष्टीकरण: इससे यह ज्ञात नहीं होता कि समाज में किसे कितना लाभ या हानि हो रही है, या कोई नीति सामूहिक रूप से फायदेमंद है या नहीं।

उदाहरण: यदि एक नीति से 90% लोगों को हल्का लाभ होता है लेकिन 10% को भारी नुकसान, तो परेटो सिद्धांत इसे अस्वीकार कर देगा, भले ही सामूहिक रूप से यह नीति लाभदायक हो।

4. यथास्थिति की रक्षा करता है

समस्या:

यह मौजूदा सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था को यथावत बनाए रखने में सहायक होता है।

स्पष्टीकरण: अगर किसी की स्थिति को बिगाड़े बिना किसी की स्थिति सुधारी नहीं जा सकती, तो कोई भी परिवर्तन नहीं किया जाएगा – चाहे वह व्यवस्था कितनी ही अन्यायपूर्ण क्यों न हो।

5. व्यावहारिक उपयोग की कठिनाई

समस्या:

यह जानना कठिन होता है कि कोई स्थिति परेटो कुशल है या नहीं, क्योंकि यह पूर्ण जानकारी (Perfect Information) और लागत-मुक्त लेन-देन को मानकर चलता है।

स्पष्टीकरण: वास्तविक दुनिया में लोग अपने लाभ/हानि के बारे में स्पष्ट नहीं होते, और लेन-देन में लागत, समय, असमान सूचनाएँ आदि शामिल होती हैं।

6. भावनात्मक और सामाजिक पहलुओं की अनदेखी

समस्या:

परेटो सिद्धांत केवल भौतिक संसाधनों और उपयोगिता पर ध्यान देता है, जबकि सामाजिक समरसता, आत्म-सम्मान, और सामाजिक सुरक्षा जैसे पहलुओं की अनदेखी करता है।

7. अनिश्चितता और जोखिम की उपेक्षा

समस्या:

यह मानता है कि भविष्य निश्चित है और सभी को अपनी प्राथमिकताएँ स्पष्ट हैं।

वास्तविकता में:

नीति निर्माण में अनिश्चितता का बड़ा प्रभाव होता है।गरीब वर्गों के लिए जोखिम अधिक होता है और लाभ सीमित।

       ……..अत: कह सकते हैं-परेटो अनुकूलतम केवल दक्षता को मापता है, न कि सामाजिक कल्याण को।इसकी सीमाएँ यह दर्शाती हैं कि आर्थिक निर्णय केवल गणितीय दक्षता से नहीं लिए जा सकते, बल्कि समानता, न्याय और व्यावहारिकता जैसे कारकों को भी ध्यान में रखना आवश्यक है।

F. निष्कर्ष

परेटो अनुकूलतम सिद्धांत आर्थिक दक्षता को समझने का एक शक्तिशाली औजार है, विशेष रूप से नीति निर्माण, सार्वजनिक वितरण, और सामाजिक सेवाओं के क्षेत्र में। परंतु यह तब तक अधूरा रहता है जब तक उसमें सामाजिक न्याय, समानता, और व्यावहारिक यथार्थ का समावेश न किया जाए।आधुनिक भारत जैसे विविधतापूर्ण और असमानता-प्रधान समाज में, परेटो दक्षता को एक मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में स्वीकार करना उचित है, न कि पूर्ण समाधान के रूप में।


* लेखक प्रधानमंत्री उत्कृष्ट महाविद्यालय, शासकीय तुलसी महाविद्यालय अनूपपुर (म.प्र.) में अर्थशास्त्र की सहायक प्राध्यापक हैं।

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