"डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति और उसका वैश्विक प्रभाव" : प्रीति वैश्य
डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति और उसका वैश्विक प्रभाव : प्रीति वैश्य*
डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति रहे, जिनका कार्यकाल 2017 से 2021 तक चला। उन्होंने अपनी नीतियों में "अमेरिका फर्स्ट" को केंद्रीय विचार बनाया। इसी नीति के अंतर्गत उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में संरक्षणवाद (Protectionism) को बढ़ावा दिया और टैरिफ (शुल्क) नीति को अपनाया। टैरिफ नीति का उद्देश्य था विदेशी वस्तुओं को महँगा बनाना ताकि अमेरिकी उत्पादों की माँग बढ़े। यह नीति सिर्फ अमेरिका की ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर असर डालने वाली साबित हुई, विशेष रूप से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं जैसे भारत पर भी इसके प्रभाव पड़े।
टैरिफ नीति क्या है?
टैरिफ नीति का अर्थ होता है – किसी देश द्वारा विदेशों से आयातित वस्तुओं पर कर लगाना। इससे विदेशी वस्तुएँ महँगी हो जाती हैं और घरेलू वस्तुएँ तुलनात्मक रूप से सस्ती लगती हैं। ट्रंप प्रशासन ने चीन, भारत, यूरोपियन यूनियन, कनाडा और मेक्सिको जैसे कई देशों से आयात होने वाली वस्तुओं पर भारी टैरिफ लगाए। इससे वैश्विक व्यापार संतुलन में बड़ी हलचल मची।
ट्रंप की टैरिफ नीति के उद्देश्य:
1. अमेरिकी उद्योगों की रक्षा करना:
ट्रंप का मानना था कि चीन और अन्य देशों से सस्ते उत्पाद अमेरिकी उद्योगों को नुकसान पहुँचा रहे हैं। टैरिफ लगाकर वे घरेलू कंपनियों को बढ़ावा देना चाहते थे।
2. रोज़गार सृजन:
जब कंपनियाँ अमेरिका में उत्पादन करेंगी तो रोज़गार के नए अवसर पैदा होंगे।
3. व्यापार घाटा कम करना:
अमेरिका का व्यापार घाटा विशेष रूप से चीन के साथ अत्यधिक था। ट्रंप इसे संतुलित करना चाहते थे।
4. राजनीतिक दबाव:
टैरिफ का इस्तेमाल कुछ हद तक रणनीतिक दबाव डालने के लिए भी किया गया – जैसे चीन को बौद्धिक संपदा अधिकारों के उल्लंघन से रोकना।
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वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
ट्रंप की टैरिफ नीति ने वैश्विक अर्थव्यवस्था पर कई स्तरों पर प्रभाव डाला, जिनमें प्रमुख रूप से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएँ, जैसे भारत, भी शामिल हैं:
1. वैश्विक व्यापार में गिरावट:
ट्रंप द्वारा चीन पर भारी टैरिफ लगाने के बाद चीन ने भी जवाबी टैरिफ लगाए। इस व्यापार युद्ध से वैश्विक व्यापार की गति धीमी हो गई। अंतरराष्ट्रीय व्यापार संगठन (WTO) ने भी इसे वैश्विक विकास के लिए खतरा बताया।
2. भारत पर प्रभाव:
भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए ट्रंप की नीति ने विशेष चुनौतियाँ पैदा कीं। उदाहरण के लिए, अमेरिका ने भारत से कुछ आयातित उत्पादों पर टैरिफ बढ़ा दिए थे, जैसे स्टील और एल्यूमिनियम। इसके परिणामस्वरूप, भारत की कंपनियों को अपने उत्पादों के लिए अधिक लागत का सामना करना पड़ा, जिससे वैश्विक व्यापार में प्रतिस्पर्धा बढ़ी। इसके अलावा, अमेरिका ने भारत के कई उत्पादों पर शुल्क भी लगाया, जिससे भारत को निर्यात में कठिनाइयाँ उत्पन्न हुईं। इसके बावजूद, भारत ने कुछ मामलों में अपनी व्यापारिक नीतियों को समायोजित करने की कोशिश की और नए द्विपक्षीय समझौतों की ओर रुख किया।
3. अनिश्चितता का माहौल:
टैरिफ नीतियों की वजह से व्यापारिक कंपनियों में निवेश को लेकर असमंजस बढ़ गया। कंपनियाँ यह तय नहीं कर पा रही थीं कि कब कौन से देश पर टैरिफ लगेगा। इससे वैश्विक निवेश धीमा हुआ और विकासशील देशों की आर्थिक स्थिरता पर भी असर पड़ा।
4. आपूर्ति श्रृंखला पर असर:
आज की वैश्विक अर्थव्यवस्था आपस में गहराई से जुड़ी हुई है। एक देश में उत्पादित वस्तु के पुर्ज़े कई अन्य देशों से आते हैं। टैरिफ बढ़ने से यह आपूर्ति श्रृंखला बाधित हुई और लागत बढ़ गई। भारत, जो कई प्रकार के पुर्ज़े और कच्चे माल का आयात करता है, ने भी इस पर नकारात्मक प्रभाव महसूस किया।
5. कृषि एवं निर्यात पर प्रभाव:
जब अन्य देशों ने अमेरिका पर टैरिफ लगाए, तो अमेरिकी किसानों को सबसे अधिक नुकसान हुआ। चीन ने अमेरिकी सोयाबीन, अनाज, और मांस पर टैरिफ लगाकर सीधे किसानों को चोट पहुँचाई। हालांकि, भारत की कृषि निर्यात को कुछ हद तक फायदा हुआ क्योंकि कुछ उत्पादों की मांग बढ़ी, लेकिन समग्र रूप से व्यापार युद्ध ने भारतीय कृषि निर्यात को भी प्रभावित किया।
6. महँगाई में वृद्धि:
विदेशी वस्तुएँ महँगी होने के कारण उपभोक्ताओं को ज़्यादा कीमत चुकानी पड़ी। इससे अमेरिका और कुछ अन्य देशों में महँगाई बढ़ी। भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाएँ भी इससे प्रभावित हुईं, क्योंकि बढ़ी हुई लागत ने भारतीय उत्पादों की अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धात्मकता को प्रभावित किया।
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चीन-अमेरिका व्यापार युद्ध और भारत:
चीन और अमेरिका के बीच चल रहा व्यापार युद्ध भारत के लिए एक अवसर भी था, क्योंकि कुछ उत्पादों के लिए चीन से आयात घटने पर भारत ने अपने निर्यात को बढ़ाया। विशेष रूप से, भारत ने अमेरिका को फार्मास्युटिकल, रत्न और आभूषण, और सूचना प्रौद्योगिकी सेवाएँ निर्यात करना शुरू किया। हालांकि, भारत ने भी अमेरिका से आने वाली कुछ वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ाने की नीति अपनाई, जो विशेष रूप से अमेरिका के व्यापारिक दबाव का जवाब था।
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निष्कर्ष:
डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति ने पूरी दुनिया के सामने संरक्षणवाद बनाम मुक्त व्यापार की नई बहस छेड़ दी। इस नीति से कुछ क्षेत्रों को अल्पकालिक लाभ हुआ, लेकिन दीर्घकालिक रूप से इसने वैश्विक व्यापार और निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव डाला। विशेष रूप से भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं को अपने व्यापारिक मार्गों को पुनः निर्धारित करना पड़ा। ऐसी नीतियाँ यदि अधिक समय तक चलें, तो वे वैश्विक अर्थव्यवस्था में विभाजन पैदा कर सकती हैं। अतः ज़रूरी है कि देशों के बीच संवाद, सहयोग और पारदर्शिता बनी रहे, ताकि विश्व अर्थव्यवस्था संतुलन और समृद्धि की ओर बढ़ सके।
* लेखक प्रधानमंत्री उत्कृष्ट महाविद्यालय, शासकीय तुलसी
महाविद्यालय अनूपपुर मध्यप्रदेश के अर्थशास्त्र विभाग में सहायक प्राध्यापक है.
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