बसंत पंचमी समाज में रंगो की अभिव्यक्ति है, हिंदू ज्ञान देवी की आराधना करते है-अमित भूषण
बसंत पंचमी, भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण और उल्लासपूर्ण पर्व है, जो हर साल माघ माह की शुक्ल पंचमी को मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से भारत, नेपाल और बांग्लादेश में धूमधाम से मनाया जाता है और इसे सरस्वती पूजा के रूप में भी जाना जाता है। बसंत पंचमी का अर्थ है 'बसंत' (वसंत) ऋतु का आगमन, जो हरियाली, रंग, और उमंग का प्रतीक है। यह पर्व जीवन में नवीनता, उल्लास और ऊर्जा का संचार करता है।
बसंत पंचमी का धार्मिक महत्व
हिंदू धर्म में बसंत पंचमी का अत्यधिक धार्मिक महत्व है। इस दिन को माता सरस्वती, ज्ञान और कला की देवी, की पूजा का दिन माना जाता है। विद्या, संगीत, कला और साहित्य में रुचि रखने वाले लोग इस दिन देवी सरस्वती की पूजा करते हैं और उनके आशीर्वाद के लिए व्रत रखते हैं। विद्यार्थियों, कलाकारों और विद्वानों के लिए यह पर्व खास मायने रखता है।
माना जाता है कि इस दिन देवी सरस्वती का प्रकटाव हुआ था। बसंत पंचमी पर उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भक्त उनके चरणों में श्रद्धा से फूल चढ़ाते हैं और अपने ज्ञान और कला के लिए प्रार्थना करते हैं। यह दिन विशेष रूप से शिक्षा संस्थानों में खुशी और उत्साह के साथ मनाया जाता है, जहाँ बच्चे अपनी किताबों को देवी के चरणों में रखते हैं और फिर उन पर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
बसंत पंचमी का सांस्कृतिक पहलू
बसंत पंचमी का सांस्कृतिक पहलू भी बहुत महत्वपूर्ण है। यह दिन न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यधिक उल्लासपूर्ण होता है। भारत के विभिन्न हिस्सों में इस दिन को खास तरह से मनाया जाता है। पंजाबी और उत्तर भारतीय क्षेत्रों में इसे 'वसंतोत्सव' के रूप में मनाया जाता है, जहाँ लोग रंग-बिरंगे वस्त्र पहनकर नृत्य करते हैं और सामूहिक गीत गाते हैं।
"बसंत आ गया, रंगों का पर्व है,
हर दिल में खुशी का समंदर है।
माँ सरस्वती की पूजा से,
ज्ञान और कला का सुख है।"
यह पर्व न केवल प्रकृति की सुंदरता का स्वागत करता है, बल्कि समाज में रंगों की अभिव्यक्ति को भी प्रोत्साहित करता है। खासकर 'पीला रंग' इस दिन का प्रतीक बन जाता है, क्योंकि इस समय सरसों के खेतों में बेशुमार पीले फूल खिलते हैं, जो पृथ्वी पर रंगों की छटा बिखेरते हैं।
बसंत और शेर-शायरी
बसंत पंचमी का पर्व भारतीय कविता, शेर और शायरी में भी अपनी छाप छोड़ चुका है। कवि-महाकवि इस दिन के उल्लास को अपनी कविताओं और शेरों के माध्यम से व्यक्त करते हैं। बसंत के मौसम के साथ प्रेम, रोमांस और उल्लास की भावना जुड़ी रहती है। यहाँ कुछ शेर और शायरी प्रस्तुत हैं, जो बसंत की खूबसूरती और उमंग को बयां करते हैं:
"वसंत के मौसम में दिल है बेकरार,
हर शख्स दिल में चाहतें सज़ा रहा है।
मोहब्बत का रंग रंगे जब बसंत,
तो ख्वाबों में हर तरफ प्यार बिखरा रहा है।"
"पीला रंग हर दिल को छू जाता है,
वसंत का मौसम हर दर्द को भुला जाता है।
हम भी इस बसंत में खो जाएं कहीं,
जो ख्वाब थे, वो सच हो जाता है।"
मुस्लिम समुदाय में बसंत की परंपरा
भारत में मुस्लिम समुदाय में भी बसंत पंचमी का पर्व रंगों और उत्सवों के रूप में मनाया जाता है। विशेषकर पंजाब और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में, मुस्लिम समुदाय भी बसंत के रंगों में शामिल होता है। यहां की रंग-बिरंगी बर्फी और गुलाबी गुलाब की छांव में लोग गीत गाते हैं और नृत्य करते हैं। हालांकि इसे धार्मिक रूप से न तो पूजा जाता है और न ही देवी-देवताओं की आराधना की जाती है, फिर भी यह मौसम की बदलाव और खुशनुमा माहौल का स्वागत करने का एक तरीका बन चुका है।
बसंत के रंगों की परंपरा, खासकर पीला रंग, मुस्लिम समाज में भी देखा जाता है, जहां महिलाएं पीली साड़ियों या चादरों में सजी-धजी नजर आती हैं। यह रंग उल्लास, उम्मीद और एक नई शुरुआत का प्रतीक है।
बसंत पंचमी और लोकगीत
इस दिन से जुड़े लोकगीत और भव्य आयोजन पूरी भारतीय संस्कृति में रचे-बसे हैं। खासकर रवींद्रनाथ ठाकुर (रवींद्रनाथ टैगोर) का प्रसिद्ध गीत "आजा बसंत" इस पर्व के उल्लास को खूबसूरती से व्यक्त करता है। बसंत पंचमी पर लोकगीतों की धुनें वातावरण में गूंजती हैं, जिससे सबका मन प्रसन्न हो जाता है।
"आजा बसंत बाग में, खिले हैं रंगों के फूल,
माँ सरस्वती की पूजा से, बसी है ज्ञान की धूल।"
निष्कर्ष
बसंत पंचमी न केवल मौसम की मधुरता और प्रकृति के सुंदर बदलाव का प्रतीक है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक उत्सव भी है, जो विभिन्न परंपराओं और आस्थाओं को एक सूत्र में बांधता है। यह पर्व जीवन में नई शुरुआत, उल्लास, और खुशहाली का संदेश देता है। चाहे वह हिंदू धर्म की सरस्वती पूजा हो, या मुस्लिम समुदाय में रंगों का पर्व, बसंत पंचमी सभी को एक नई ऊर्जा और उल्लास से भर देती है।
यह पर्व न केवल धार्मिकता का उत्सव है, बल्कि रंग, संगीत, नृत्य और शायरी के माध्यम से हर व्यक्ति को आनंद और सकारात्मकता का अनुभव कराता है। बसंत पंचमी के इस खुशहाल अवसर पर हमें प्रकृति और जीवन के हर पहलू का सम्मान करना चाहिए और यह समझना चाहिए कि हर परिवर्तन, चाहे वह मौसम का हो या जीवन का, हमें एक नई दिशा और शक्ति प्रदान करता है।
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