हलषष्टि या हर छठ_प्रेम सिंह

हलषष्ठी _
     भाद्रपद मास की षष्ठी तिथि को हलषष्टि या हर छठ व्रत मनाया जाता है इस व्रत की उपादेयता कितनी अधिक है,इसका इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पूरे बुंदेलखंड के गांवों की  एक भी पुत्रवती औरत किसी भी जाति की हो और बिना व्रत के नहीं रह सकती 
1-सभी जिनके भी पुत्र हैं ऐसी महिलाएं  आज के दिन सुबह से ही व्रत रहती हैं कुछ औरतें दिन में एक बार खाती हैं लेकिन धरती से उगाया हुआ अन्न और गाय का दूध नहीं लेती है।
2-आज के दिन कोई भी महिला  जुते हुए खेत में नहीं जाएगी। 
3-प्रत्येक किसान परिवार के घर में बसोर , 6 छोटी पिपरिया, हर घर में पहुंचाएंगे,इसी प्रकार कुम्हार हर घर में 12 कुढौवा प्रति बालक की दर से, (अर्थात यदि किसी दो बच्चे की मां के पास देने  है तो 24) गांव का नाई कांस,झड़ बेरी और ढाक की  एक डाल का बंडल बांध कर,जहां-जहां हलछठ की पूजा होनी है उन उन स्थानों पर पहुंच जाएगा।इसी प्रकार जुलाहा सूत एवम 
माली आदि सभी कुछ ना कुछ हर घर में पहुंचाते हैं और उसके उपलक्ष में उनको पर्याप्त मात्रा में अनाज या कुछ अन्य वस्तुएं किसानों द्वारा दी जाती हैं।
4- भरभूंजा के यहां से भुनकर सात प्रकार का अन्न अरहर, ज्वार,बाजरा,गेहूं, जौ,चना आदि  हर घर में आएगा ।
5- 15- 20 परिवारों के ग्रुप में  महिलाएं एक साथ पूजन करेंगी।इसमें  ना कोई प्रतीक देवता और ना ही कोई बिचौलिया सामिल होता है।सीधे-सीधे कांस, ढाक और झड़बेरी के बंडल को सामने जमीन में गाड कर चारों तरफ से  पूजन की सभी सामग्रियां लेकर  स्त्रियां बैठ जाती हैं और इसके जितने पुतृ होते हैं उतने 12 कुढौवे  भुने हुए सात प्रकार का अन्न भरकर धरती मां को अर्पित करती हैं। आग में भैंस के घी और महुआ का हवन करती हैं।
6- इसके बाद कोई एक महिला बाकी शेष महिलाओं को एक कहानी सुनाती है।बुंदेलखंड में दो प्रकार की  कहानियां प्रचलित है  एक कहानी यह ज्यादा प्रचलित है की जुताई करते समय हल की फाल एक ग्वालिन के लड़के को लग गई जिसकी वजह से उसका का पेट फट गया।
  तो उसकी मां किसी  भडरी(ज्ञानी)के पास गई और उसने उसको  जारी के कांटे और कांसे से सिलकर ढाक बांध देने से ठीक हो गया, और वह बच गया।
 इसी प्रकार एक दूसरी कहानी प्रचलित है कि किसी ने तालाब खोदा और तालाब खोदते समय  उसका बच्चा मर गया। किसी ज्ञानी से पूंछा  कि उसका बच्चा क्यों मरा?इसमें तो  सभी जीव जंतु पानी पीएंगे। ज्ञानी ने उसके लिए  प्रार्थना की और उसका बच्चा उसी  तालाब में पानी के किनारे खेलता हुआ  पाया गया।
7- दोनों कहानियों का मूल आशय यह है कि जब धातु युग में हल,हंसिया,फावड़ा,कुल्हाड़ी आदि का आविष्कार  हुआ, तो खेती में हिंसा की शुरुआत हुई अर्थात विभिन्न प्रकार के छोटे-छोटे जीव जंतु सांप,बिच्छू आदि मरने लगे, कुल्हाड़ी आदि आने से ढाक खोदे गए , कांस काटा गया, झरवेरी खत्म की गई, खेत बनाए गए ।विभिन्न प्रकार के वन्य जंतुओं के रुकने के स्थान बाधित हुए तभी इस व्रत की परंपरा शुरू हुई।   
8- यह व्रत माताओं के  संवेदनशीलता की अद्भुत कहानी है की जुताई करने से और हल ,फावड़े ,कुल्हाड़ी के आविष्कार से जो  धरती की पेड़ पौधों क्षति हुई , जीवो की हत्याएं हुई, जिसके परिणाम स्वरूप अकाल मृत्यु और बीमारियां बढ़ीं उससे चिंतित होकर माताओं ने एक सामूहिक संकल्प की प्रक्रिया अपनाई 
  कि हमारे बेटे धरती मां को खोदेंगे खनेगै तो उसमें जो जीव हत्या होगी उसके लिए धरती मां उनको माफ करें।
  माताओ की अपने पुत्रों के प्रति की गई संवेदनशील शुभकामनाओं की अद्भुत कहानी है।
7- जब से  खेती की परंपरा की शुरुआत, हल का आविष्कार हुआ तभी से हल छठ का व्रत भी माताएं मना रही हैं।
इससे यह भी अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत में खेती की परंपरा कितनी पुरानी है।

लेखक आवर्तनशील खेती के जनक है तथा इस पोस्ट को उनके फेसबुक वाल से विद्यार्थियों के लिए सूचनार्थ सभारपूर्वक लिया गया है।

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