श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व विशेषांक_अमित भूषण
आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी है।
हिंदू धर्म के तीनों प्रमुख ईश्वर में से भगवान श्रीकृष्ण और भगवान शिव दोनों लोग अपने अंदर स्त्रीत्व स्वीकारनें की शिक्षा देते है। हालांकि, दोनो ईश्वर के द्वारा इसे स्वीकारने का तरीका अलग- अलग है। एक ओर जहां भगवान शिव तथा देवी पार्वती अपने सह-अस्तित्व रूपी रूप के साथ लोक में 'अर्धनारीश्वर' कहलाएं वहीं, दूसरी ओर श्रीकृष्ण समय-समय पर बनावटी स्त्रीरूप किंतु, सगुणस्त्री रूप धारण कर 'विश्वरूपम' कहलाएं। यदि हम शिव और कृष्ण के इन दोनों रूपों नामतः अर्द्ध-नारीश्वर तथा विश्वरूपम की प्रकृति में थोड़ा बहुत अंतर करें तो यह आसानी से समझ सकते है कि शिव और पार्वती के अस्तित्व का विलय पूर्ण नहीं है। उनकी सांझी 'अर्धनारीश्वर रूप में दोनों अपने प्रकृति में स्वतंत्र रहते हुए सह अस्तित्व की शिक्षा देते है।
कुछ बालकों अथवा कुछ बालिकाओं में अपनी अपनी लैंगिक विभाजनो के साथ भी अक्सर हम कहते है कि वह लड़की,लड़के जैसा है अथवा वह लड़का लड़की जैसा है। कहने का तात्पर्य है की प्रत्येक पुरुष में एक महिला तथा प्रत्येक महिला में एक पुरुष है, किंतु दोनों पूर्ण नहीं है, दोनो एक नहीं है बल्कि, दोनों एक दूजे से स्वतंत्र है तथा सृजन तब होती है जब वे दोनो साथ होते है तथा सह अस्तित्व को स्वीकारते है। संक्षेप में, अर्धनारीश्वर रूप में आधी आधी देह स्त्री तथा पुरुष लिंग का है। पार्वती शक्ति/सृजन रूप है तथा शिव संहार रूप है तथा यह प्रकृति तब संतुलन में होती है जब दोनो एक साथ होते है।
दूसरी तरफ कृष्ण भी बनावटी स्त्री रूप में कई बार दिखते है। मोहिनी रूप का धारण वह एक राक्षस का वध करने के लिए करते है। लोक कथाओं में भी राधा जी के साथ नृत्य में कई अवसरों पर कृष्ण स्त्री रूप में रास रचाते है। लोक गीतों में कृष्ण के छलिया वेश धरकर राधा जी से गोदना गोदनहरी बनकर मिलने जाने के कई गीत है। इसकी सर्वाधिक अभिव्यंजना लोक नृत्य में हुई है। भोजपुरी लोक में लौंडा नाच की जड़ो को हम कृष्ण के इस मोहनीरूप(विश्वरूप) अथवा छलिया रूप में देख अथवा महसूस कर सकते है। लौंडा नाच बहुत कलात्मक तथा अत्यंत उच्च ऊर्जायुक्त लयबद्ध नृत्य है। इस नृत्य की पवित्रता के बारे में एक दिन सूरीनाम भोजपुरी के एक प्रसिद्ध पॉप सिंगर ने कहा कि जब हमारे यहां विवाह के वक्त द्वारपूजा के लिए वर तथा वधु पक्ष आमने सामने बैठते है तो बैठकी के वक्त में बहुत ही सम्मान के साथ लौंडा नाच आमंत्रित किया जाता है। यह एक पवित्र रस्म की तरह हैं। उसी इंटरव्यू में वे आगे बताते है कि आज भी उनके यहां लौंडा नाच में बिलकुल भी गंदगी नहीं है। लौंडा नाच बैठक गायकी का हिस्सा है। आइए, अपने रस्मों की मर्म को समझें तथा अपने आसपास के लौंडा नाच के कलाकारों को उनमें ईश्वरत्व की भावना को देखते हुए उनका सम्मान करें।
संक्षेप में हम यह कह सकते है कि भगवान शिव का अर्द्ध-नारीश्वर रूप तथा भगवान श्रीकृष्ण का विश्वमोहनी रूप क्रमशः दोनों एडॉप्टेशन तथा ट्रांसफॉर्मेशन के माध्यम से हमें अपने अंदर स्त्रीत्व स्वीकारनें की शिक्षा देते है तथा इन दो गुणों के होते हुए कोई व्यक्ति कभी भी नारी का अपमान नहीं कर सकता है।
इन पंक्तियों के साथ इस ब्लॉग को समाप्त करते है_
जब से राधा श्याम के नैन हुए है चार
श्याम बने है राधिका राधा बन गए श्याम
आप सबको श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
लेखक_डॉक्टर अमित भूषण द्विवेदी
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