प्रकृति और सद्भावना का त्योहार है भोजली- अमित भूषण& संजना द्विवेदी
प्रकृति और सद्भावना का त्योहार है भोजली
अमित भूषण&संजना द्विवेदी
बलिया और अनूपपुर में एक समानता मुझे यह दिखती है कि जैसे बलिया राजनीतिक एवं भागौलिक दृष्टि से उत्तर प्रदेश का हिस्सा होते हुए भी सांस्कृतिक दृष्टि से भोजपुर का क्षेत्र है ठीक वैसे ही अनूपपुर मध्य प्रदेश में होते हुए भी इसका बहुत बड़ा इलाका सांस्कृतिक दृष्टि से छतीसगढ़ का है। सांस्कृतिक सीमाएं राष्ट्रीय/राज्य की सीमाओं से परे भी हो सकती है। आज यहां पर भोजली पर्व है।
छतीसगढ़ के पारंपरिक पर्व भोजली मित्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है।भाईचारे और सद्भावना का प्रतीक है।अच्छी वर्षा और फसल एवं सुख- समृद्धि की कामना के लिए रक्षाबंधन के दूसरे दिन भोजली पर्व मनाया जाता है।इसे कई स्थानों पर भुजरियां/कजलियां नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व प्रकृति प्रेम और खुशहाली से जुड़ा पर्व है। इसका प्रचलन सदियों से चला आ रहा है।
रक्षाबंधन की पूजा में इसको भी पूजा जाता है और धान के कुछ हरे पौधे भाई को दिए जाते हैं या उसके कान में लगाए जाते हैं। भोजली नई फ़सल की प्रतीक होती है। और इसे रक्षाबंधन के दूसरे दिन विसर्जित कर दिया जाता है। नदी, तालाब और सागर में भोजली को विसर्जित करते हुए अच्छी फ़सल की कामना की जाती है।
भोजली त्यौहार हर साल रक्षाबंधन त्यौहार के दूसरे दिन पड़ता है। भोजली त्यौहार मनाने के लिए नागपंचमी के दिन सुबह गेहूं और ज्वार को भिगोया जाता है। शाम को बांस के एक टोकरी में मिट्टी और खाद डाल कर उसमे गेहूं बीज को डाला जाता है।5 दिन बाद भोजली बाहर निकल कर आता है और रक्षा बंधन के अगले दिन विसर्जन किया जाता है।
भोजली पर्व की आप सब को हार्दिक शुभकामनाएं।
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