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"गांधीजी का ग्राम स्वराज एवं स्वावलंबन का आर्थिक मॉडल : स्वरूप, तत्त्व एवं आधुनिक प्रासंगिकता "

"गांधीजी का ग्राम स्वराज एवं स्वावलंबन का आर्थिक मॉडल : स्वरूप, तत्त्व एवं आधुनिक प्रासंगिकता " ✍️ —  प्रीति वैश्य(सहायक प्राध्यापक, अर्थशास्त्र विभाग, PMCoE , शासकीय तुलसी महाविद्यालय अनूपपुर (म.प्र.) --- परिचय भारतीय आर्थिक चिंतन का इतिहास केवल पश्चिमी सिद्धांतों का अनुकरण नहीं, बल्कि उन वैचारिक प्रवृत्तियों का भी साक्षी है जो नैतिकता, सामाजिक न्याय और आत्मनिर्भरता के आधार पर विकसित हुईं।इसी परंपरा में महात्मा गांधी का आर्थिक चिंतन एक विशिष्ट स्थान रखता है। महात्मा गांधी केवल राजनीतिक नेता नहीं, बल्कि एक गंभीर आर्थिक चिंतक भी थे।उनके आर्थिक विचारों की जड़ें भारतीय संस्कृति, स्वदेशी, आत्मनिर्भरता और श्रम-सम्मान की परंपरा में निहित हैं।गांधीजी का “ग्राम स्वराज और स्वावलंबन” का मॉडल वास्तव में भारतीय आर्थिक विकास का नैतिक और मानवीय विकल्प प्रस्तुत करता है ,जो व्यक्ति, समाज और प्रकृति के बीच संतुलन की बात करता है। 1. ग्राम स्वराज की अवधारणा (Concept of Village Swaraj) गांधीजी के अनुसार, “भारत का भविष्य उसके गांवों में बसता है।” उनका मानना था कि भारत की आत्मा उसके ग्राम्य जीवन म...

दीपोत्सव 2025

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दीपोत्सव 2025 अमित भूषण आज जब आप अपने आंगन में एक छोटा सा दीपक जलाते हैं, तो यह केवल प्रकाश नहीं देता, बल्कि हजारों वर्षों की हमारी सांस्कृतिक यात्रा की कहानी सुनाता है। करीब तीन हजार वर्ष पहले, वैदिक ऋषियों ने प्रार्थना की थी — “तमसो मा ज्योतिर्गमय” — हमें अज्ञान से ज्ञान की ओर ले चलो। दीपक उसी आत्मिक प्रकाश का प्रतीक है। इस दीपक ने उत्सव का रूप तब लिया जब भगवान श्रीराम चौदह वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे। पूरी नगरी दीपों से जगमगा उठी, जो अधर्म पर धर्म की और अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक था। यहीं से दीपावली पर्व आरंभ हुआ। लगभग पच्चीस सौ वर्ष पूर्व, भगवान बुद्ध ने इसे और गहराई दी, जब उन्होंने कहा — “अप्प दीपो भव” — अपने दीपक स्वयं बनो। यह आत्म-निर्भरता का संदेश था। भक्तिकाल में संतों ने बाहरी दीपक को आंतरिक प्रकाश से जोड़ा। कबीर दास जी ने इसे आत्मा के ज्ञान का प्रतीक बताया, और गुरु नानक देव जी ने कहा कि ज्ञान का दीपक ही मन का अंधकार मिटाता है। आधुनिक कवियों ने इसे सामाजिक सद्भावना का प्रतीक माना। इस दीपावली, हम तीन संकल्प लें: घर में दीपक जलाकर बाहर का अंधेरा दूर कर...

आर्थिक परिषद का गठन 8 अक्टूबर को, पंजीकरण शुरू

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महाविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग में एक बार फिर शैक्षणिक उत्कृष्टता और छात्र सशक्तिकरण की नई कहानी लिखी जाने वाली है। सत्र 2025-26 के लिए आर्थिक परिषद का गठन 8 अक्टूबर को सुबह 11 बजे विभाग में किया जाएगा। इस वर्ष की खास बात यह है कि परिषद हुनर आधारित होगी, जो विद्यार्थियों के कौशल विकास को नई दिशा देगी। आर्थिक परिषद 2025-26: हुनर आधारित शिक्षा का नया आयाम अर्थशास्त्र विभाग में 2019-20 से निरंतर संचालित हो रही आर्थिक परिषद केवल एक स्टूडेंट क्लब नहीं है। यह एक ऐसा मंच है जहाँ सिद्धांत और व्यवहार का सुंदर समन्वय होता है। परिषद की बहुविध भूमिका ने इसे विभाग की रीढ़ बना दिया है। विगत वर्षों में आर्थिक परिषद के माध्यम से विभाग में एक सुदृढ़ मेंटरशिप प्रणाली संचालित की गई है, जिससे वरिष्ठ और नवागत छात्रों के बीच ज्ञान का सेतु निर्मित हुआ है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के क्रियान्वयन में भी आर्थिक परिषद ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे शिक्षा में नवाचार और समग्र विकास को बढ़ावा मिला है। आर्थिक परिषद का मूल उद्देश्य विद्यार्थियों को विभाग और परिषद द्वारा आयोजित विविध शैक्षणिक गतिविधियों में...

सोन सी रेत लिए चलने वाली नदी सोन-अमित भूषण

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अमरकंटक (जिला-अनूपपुर) से माता नर्मदा नदी के अलावा जो अन्य दो नदियाँ निकलती हैं उनका नाम सोन तथा जोहिला नदी है। वर्षों से नदी ने इधर के पहाड़ों का अपरदन करते हुए अपनी तलहटी में स्वर्ण अर्थात सोने जैसी बालू बिछाई है। अमरकंटक के सोनमुड़ा से निकलने वाली तथा सोने जैसी बालू अपने तलछट में बिछाते हुए चलने वाली सोन नदी के किनारे अनूपपुर, सोनभद्र तथा सोनपुर मुख्य शहर हैं। सोन गंगा की सहायक नदी है और यह बिहार में जाकर गंगा नदी में मिल जाती है। इससे पहले सोन नदी अपने उद्गम से निकलने के बाद छत्तीसगढ़ में प्रवेश करने के पश्चात पुनः मध्यप्रदेश में प्रवेश करती है। अनूपपुर के जैतहरी स्थित क्याटार में मोजर बेयर द्वारा एक सब सुपर थर्मल पावर प्लांट संचालित किया जा रहा है।  इस पावर प्लांट के लिए जल सोन नदी से लिया जा रहा है। अनूपपुर के ही चचाई नामक स्थान पर इस नदी पर एक डैम बनाकर ताप विद्युत पैदा करने का एक संयंत्र लगा हुआ है, जिसे कोयला एसईसीएल से प्राप्त होता है। इसी प्रकार इसी नदी के जल के उपयोग से अनूपपुर तथा शहडोल जिले की सीमा पर सीके बिड़ला समूह की ओरिएंट पेपर मिल व कास्ट...

"कौटिल्य का अर्थशास्त्र: प्राचीन भारत की आर्थिक दूरदृष्टि और आज की प्रासंगिकता" * प्रीति वैश्य

"कौटिल्य का अर्थशास्त्र: प्राचीन भारत की आर्थिक दूरदृष्टि और आज की प्रासंगिकता" --- भूमिका जब हम आज के आर्थिक सिद्धांतों की बात करते हैं, तो अक्सर पाश्चात्य विचारकों के नाम सामने आते हैं। किंतु भारत में अर्थशास्त्र की नींव बहुत पहले ही रखी जा चुकी थी। चाणक्य, जिन्हें हम कौटिल्य या विष्णुगुप्त के नाम से भी जानते हैं, ने मौर्यकाल में एक ऐसा ग्रंथ रचा जो न केवल राज्य संचालन बल्कि समग्र आर्थिक जीवन का मार्गदर्शक है—‘अर्थशास्त्र’। यह ग्रंथ एक परिपक्व, व्यावहारिक और रणनीतिक आर्थिक दर्शन का परिचायक है, जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है। अर्थ का व्यापक दृष्टिकोण कौटिल्य के लिए ‘अर्थ’ केवल धन नहीं, बल्कि वह संपूर्ण शक्ति थी जिससे राज्य की स्थिरता और समृद्धि सुनिश्चित होती थी। उन्होंने अर्थ को कृषि, वाणिज्य, खनिज, कर, मुद्रा, न्याय, श्रम, सुरक्षा और उत्पादन से जोड़ा। उनके अनुसार “अर्थस्य मूलं राज्यं” अर्थात अर्थ ही राज्य का मूल है। --- मुख्य आर्थिक सिद्धांत और व्यवस्थाएँ 1. न्यायपूर्ण कर प्रणाली कौटिल्य का कर सिद्धांत अत्यंत संतुलित था। कर न बहुत अधिक हो, न ही अत्यंत न्यून। उन्होंने कर संग...

विश्व जनसंख्या दिवस विशेष

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भा रत और चीन: जनसंख्या नियंत्रण की विपरीत सोच भारत और चीन जनसंख्या नियंत्रण को लेकर आरंभ से ही विपरीत दृष्टिकोण अपनाते आए हैं। जहाँ साम्यवादी चीन ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए सख़्त और कठोर कानूनी उपायों को अपनाया, वहीं भारत ने इस विषय में एक उदार और लोकतांत्रिक नीति को प्राथमिकता दी। चीन की जनसंख्या नीति की जड़ें माल्थस द्वारा प्रस्तुत जनसंख्या संबंधी भय में खोजी जा सकती हैं। माल्थस ने कहा था कि यदि मानव ने आत्म-संयम नहीं अपनाया और देर से विवाह जैसी प्रवृत्तियाँ नहीं बढ़ीं, तो प्रकृति स्वयं ही जनसंख्या नियंत्रण करेगी—बाढ़, अकाल, भुखमरी और महामारियों के माध्यम से। हम जानते हैं कि 1950 के बाद जितने भी वैश्विक अकाल पड़े, उनमें चीन का अकाल सबसे भयावह था। अनुमान है कि उस अकाल में 2 करोड़ से अधिक लोग मारे गए। दूसरी ओर, स्वतंत्र भारत में वैसा कोई भी अकाल नहीं पड़ा जैसा अंग्रेज़ी शासन काल में पड़ा था। न ही "आनंदमठ" में दर्शाए गए भयावह अकाल, और न ही 1943 के बंगाल अकाल जैसे त्रासदीपूर्ण दृश्य स्वतंत्र भारत ने देखे। आज़ादी के बाद कुछ अकाल ज़रूर आए, लेकिन वे युद्ध, प्राकृतिक...

विभाग में स्वयं पाठ्यक्रमों पर आयोजित किया गया जागरूकता कार्यक्रम

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 ऑनलाइन शिक्षा की ओर एक प्रेरक कदम — स्वयं पाठ्यक्रमों पर जागरूकता कार्यक्रम कार्यक्रम का नाम:  स्वयं पाठ्यक्रमों पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजक: अर्थशास्त्र विभाग,  प्रधानमंत्री उत्कृष्ट महाविद्यालय, शासकीय तुलसी ,महाविद्यालय,अनूपपुर(मध्य प्रदेश) दिनांक: 03 जुलाई 2025 समय: प्रातः 11:00 बजे स्थान: कक्ष क्रमांक 12 प्रधानमंत्री उत्कृष्ट महाविद्यालय, शासकीय तुलसी महाविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग द्वारा विद्यार्थियों को SWAYAM (स्वयं) प्लेटफ़ॉर्म की जानकारी देने हेतु एक प्रभावशाली जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्देश्य छात्रों को गुणवत्तापूर्ण ऑनलाइन पाठ्यक्रमों की जानकारी देना तथा उन्हें स्वयं प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से पंजीकरण के लिए प्रेरित करना था। कार्यक्रम में स्वयं पाठ्यक्रमों के संयोजक व रसायनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक श्री ऋषिकेश चंद्रवंशी ने विद्यार्थियों को हैंड्स-ऑन प्रशिक्षण के माध्यम से बताया कि कैसे वे स्वयं पोर्टल पर लॉगइन कर अपनी पसंद के पाठ्यक्रमों में नामांकन कर सकते हैं। श्री चंद्रवंशी ने छ...