तिरुक्कुरल के आर्थिक विचार : श्रम, दान और नैतिक संपदा की आधुनिक प्रासंगिकता
तिरुक्कुरल के आर्थिक विचार : श्रम, दान और नैतिक संपदा की आधुनिक प्रासंगिकता ✍️ — प्रीति वैश्य (सहायक प्राध्यापक, अर्थशास्त्र विभाग) --- परिचय भारतीय ज्ञान परंपरा में ऐसे अनेक ग्रंथ हैं जिन्होंने जीवन के नैतिक, सामाजिक और आर्थिक आयामों को अद्भुत रूप से जोड़ा है। इन्हीं में से एक है — ‘तिरुक्कुरल’ (Thirukkural) , जिसे तमिल संत कवि तिरुवल्लुवर ने रचा। यह ग्रंथ न केवल तमिल साहित्य का रत्न है, बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए जीवन-दर्शन और आर्थिक आचरण का शाश्वत मार्गदर्शक है। तिरुक्कुरल : एक परिचय लेखक: संत कवि तिरुवल्लुवर भाषा: तमिल रचना काल: लगभग 2वीं शताब्दी ई.पू. से 5वीं शताब्दी ई. के बीच रचना स्वरूप: कुल 133 अध्याय (अधिकरम्) कुल 1330 दोहे (कुरल) हर कुरल केवल दो पंक्तियों का होता है, परंतु उसमें गहन जीवन दर्शन निहित है --- विषय–विभाजन (तीन खंड) 1. अरम (धर्म / सदाचार) — नैतिकता, सत्य, करुणा, संयम और आचार-व्यवहार की शिक्षा देता है। 2. पुरुल (अर्थ / धन या राजनीति) — सामाजिक जीवन, शासन, प्रशासन, व्यापार, कृषि, कर नीति और श्रम के सम्मान से जुड़ा हुआ है। 3. इन्बम (काम / प्रेम) — गृहस्थ जीवन...