"कौटिल्य का अर्थशास्त्र: प्राचीन भारत की आर्थिक दूरदृष्टि और आज की प्रासंगिकता" * प्रीति वैश्य
"कौटिल्य का अर्थशास्त्र: प्राचीन भारत की आर्थिक दूरदृष्टि और आज की प्रासंगिकता" --- भूमिका जब हम आज के आर्थिक सिद्धांतों की बात करते हैं, तो अक्सर पाश्चात्य विचारकों के नाम सामने आते हैं। किंतु भारत में अर्थशास्त्र की नींव बहुत पहले ही रखी जा चुकी थी। चाणक्य, जिन्हें हम कौटिल्य या विष्णुगुप्त के नाम से भी जानते हैं, ने मौर्यकाल में एक ऐसा ग्रंथ रचा जो न केवल राज्य संचालन बल्कि समग्र आर्थिक जीवन का मार्गदर्शक है—‘अर्थशास्त्र’। यह ग्रंथ एक परिपक्व, व्यावहारिक और रणनीतिक आर्थिक दर्शन का परिचायक है, जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है। अर्थ का व्यापक दृष्टिकोण कौटिल्य के लिए ‘अर्थ’ केवल धन नहीं, बल्कि वह संपूर्ण शक्ति थी जिससे राज्य की स्थिरता और समृद्धि सुनिश्चित होती थी। उन्होंने अर्थ को कृषि, वाणिज्य, खनिज, कर, मुद्रा, न्याय, श्रम, सुरक्षा और उत्पादन से जोड़ा। उनके अनुसार “अर्थस्य मूलं राज्यं” अर्थात अर्थ ही राज्य का मूल है। --- मुख्य आर्थिक सिद्धांत और व्यवस्थाएँ 1. न्यायपूर्ण कर प्रणाली कौटिल्य का कर सिद्धांत अत्यंत संतुलित था। कर न बहुत अधिक हो, न ही अत्यंत न्यून। उन्होंने कर संग...