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विभाग के विद्यार्थियों मेघा वर्मा और पूजा राठौर ने मानव विकास प्रतिवेदनो के शीर्षकों को समर्पित शैक्षणिक बैनर बनाया-अमित भूषण

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    फोटो क्रेडिट:संतोषी राठौर अर्थशास्ञ विभाग की छात्राएं मेघा वर्मा तथा पूजा राठौर ने अमर्त्य सेन तथा महबूब उल हक के कामों पर आधारित वर्ष 1990 से प्रकाशित हो रहे मानव विकास सूचकांक, मानव विकास प्रतिवेदनों तथा उनके थीम आधारित प्रतिवेदनों को समहित करते हुए हस्त निर्मित बैनर तैयार किया है। मेघा और पूजा की इस कार्य के लिए विभाग की ओर से सराहना प्रकट की जा रहीं है।  क्या है मानव विकास प्रतिवेदन यह संयुक्त राष्ट्र के विकास कार्यक्रमों के तहत मानव विकास कार्यालय के कार्यालय द्वारा वार्षिक रूप से संकलित और प्रकाशित की जाने वाली रिपोर्टें हैं, जो अर्थव्यवस्था, क्षेत्रों और व्यापार विकास के बीच प्रगति के संदर्भ में मानव विकास संकेतक दिखाती हैं। ये रिपोर्ट स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी जीवन स्तर में अधिकांश विकासशील क्षेत्रों को दर्शाती प्रवृत्तियों पर समीक्षा और टिप्पणी करती हैं। मानव विकास सूचकांक (HDI) एक सूचकांक है, जिसका उपयोग देशों को "मानव विकास" के आधार पर आंकने के लिए किया जाता है। ...मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) जीवन प्रत्याशा, शिक्षा, और प्

NAAC के तैयारियों के मध्य बीते सप्ताह विभाग को मिला एक कंप्यूटर

विदित हो की महाविद्यालय में नेक की तैयारियों के मद्देनजर देखते हुए बीते सप्ताह एम.ए.अर्थशास्त्र की कक्षा में संचालित हो रहे अर्थशास्त्र विभाग को एक अतिरिक्त संसाधन के रूप में एक छोटे प्रिंटर सहित कम्प्यूटर मिला है जिसे अभी कक्षा में ही रखकर विभागीय कार्यों को कुछ हद तक किया जाना संभव हो सकेगा। 

आर्काइव पोस्ट 01: भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की भूमिका-राहुल त्रिपाठी

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भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की भूमिका-राहुल त्रिपाठी                                                                फ़ाइल चित्र: राहुल त्रिपाठी "खेती उत्तम काज है,  इहि सम और न होय। खाबे को सबको मिलै, खेती कीजे सोय।।" अर्थात कृषि उत्तम कार्य है;इसके बराबर कोई दूसरा कार्य नहीं है; यह सबको भोजन देती है इसलिये कृषि करना चाहिये.भोजन जैसी मूलभूत आवश्यकता की पूर्ति करने वाली कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही है.रामायण,महाभारत, मौर्यकाल,मध्यकाल से होते हुए वर्तमान काल(वर्ष 2021तक) अनेकानेक बदलाव हुये। इन युग परिवर्तनकारी बदलाओं के बीच अगर कुछ स्थिर रहा है है तो वह कृषि ही है जो आज तक भारतीय का मुख्य आधार बनी हुई है.औपचारिक अर्थशास्त्र में किसी भी अर्थव्यवस्था को मोटे तौर पर तीन भागों में बांटा जाता है- प्राथमिक,द्वितीयक, तृतीयक.भारतीय अर्थव्यवस्था में भी ये तीन भाग पाए जाते हैं-प्राथमिक क्षेत्र कृषि का है; द्वितीयक क्षेत्र उद्योग का और तृतीयक क्षेत्र सेवा का.बिना प्राथमिक क्षेत्र के द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्र चल ही नहीं सकते.उदाहरण के लिए फर्नीचर के उद्योग को लकड़ी की आपूर्ति कृषि

यादों के पिटारे से, फेसबुक आर्काइव पोस्ट(01)

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विनम्रता मनुष्य का प्रथम गुण होता है और अपने ज्ञान को बांटना किसी भी अध्यापक की प्राथमिक दायित्व होता है। Lockdown के उथल पुथल के दौर में शिक्षा व्यवस्था भी चरमरा गई थी किंतु, उसके बाद धीरे से ही सही किंतु, पुनः कुछ सकारात्मक चिन्ह दिखने लगे है। अर्थशास्ञ विभाग में शासनादेश की अनुपालन के क्रम में आज दिनांक 01 अक्टूबर  से अग्रिम आदेश तक के लिए 30 नवंबर तक  शासकीय तुलसी महाविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग में ऑनलाइन क्लास का विधिवत शुभारंभ हो गया।  विभाग में ऑनलाईन क्लास की उद्घाटन के लिए श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स, दिल्ली यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्र विषय के  प्रोफ. (डॉ) संतोष कुमार सर को आमन्त्रित किया था और उन्होंने इस आमंत्रण को सहज स्वीकार कर घण्टे भर से अधिक छात्रों को मोटीवेट किये साथ ही यह भी बताए कि अर्थशास्त्र कैसे पढ़ें, अर्थशास्त्र में क्या पढ़े और आगे रोजगार की क्या संभावनाएं है!  विभाग की ओर से डॉ संतोष कुमार सर का व्यक्तिगत तौर से और विभाग की ओर से सहृदय आभार व्यक्त करता हूँ। ऑनलाइन क्लास उद्घाटन के इस अवसर पर हमारे साथ D N PG कॉलेज के राजनीति वि

परियोजना कार्यों के लिए विश्लेषण रीतियों में समन्वय की आवश्यकता-अमित भूषण

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शोध विधि कैसी होनी चाहिए? अमित भूषण केवल तर्कपूर्ण चिंतन को ही परम सत्य नहीं माना जा सकता क्योकि तर्कपूर्ण चिंतन भी पूर्वाग्रहों से मुक्त नहीं है। केवल संवेदनाओं पर आधारित चिंतन को भी परम् सत्य नही माना जा सकता है क्योकि वह भी पूर्वाग्रहों से मुक्त नहीं है। एक शोधवेत्ता के तौर पर हमें इन दोनों ही अतियों से बचना चाहिए। इन दोनों के बीच हमें कहीं एक समन्वय स्थापित करने की कोशिश करनी चाहिए। बहुधा, विशेषरूप से विश्लेषण की इन दोनो रीतियों को समाजिक विज्ञान में हम इस मध्यम मार्ग को व्यावहारिक मार्ग भी कहते है। यहीं मार्ग हमें भगवान बुद्ध भी सिखाये है। इस मार्ग में हम अपनी मानवीय संवेदनाओं को तर्क के आधार पर विश्लेषित करते है और फिर गुणात्मक/परिणात्मक विधियों का उपयोग  कर उसकी व्यवहारिकता और उपादेयता की जांच भी करते है। वर्तमान समय में सामाजिक विज्ञान के सभी विषयों में इस शोध विधि का महत्व बढ़ा है। प्रोफेसर सेन इसी विधि का प्रयोग करते हुए यह कहते है कि न्याय का संबंध केवल तर्क तक ही सीमित नहीं है बल्कि, वास्तविक सामाज में न्याय का होते हुए दिखना भी उतना ही जरूरी है। इस शोध विधि ने

Positive Vs Normative Economics_Khushi Gupta

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Khushi Gupta, MA First Sem   Positive and Normative Economics  1. Positive economics. Positive economics is a part of economics that contemplates the explanation and evidences of economic ovcurance. It is the study of economics grounded on the intentionally analysis. Today most economists concentrate on the positive economics analysis. 👉 Objectiv approach. 👉 Rely on facts. Positive economics is the study of "what is". It relies on valid data and facts. Every statement is proven significantly and either proven or disregarded. Example of positive economics:- Here's an example of a positive economics statements:  "Government-provides Healthcare increases public expenditure." Thus statement is fact based and has no value judgement attached to it. It's validity can be proven (or disproven) by studying Healthcare spending where government provide Healthcare. Importance of positive economics. 1. Positive economics is based on Objective data rather tha

क्या है GEP?

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०३ अगस्त को मैं नेशनल नेचर नेटवर्क टीम के ऑनलाइन गूगल मीटिंग में शामिल हुआ। बैठक को हेस्को के निदेशक आदरणीय डॉ अनिल प्रकाश जोशी सर ने संबोधित किया तथा रामबाबू तिवारी ने संचालित किया। इस अवसर पर अन्य साथियों ने भी अपने बिंदुओं को कार्यक्रम में रखा।  इस अवसर पर संबोधित करते हुए डॉ अनिल प्रकाश जोशी ने कहा की अब सकल पर्यावरण उत्पाद केवल हवा हवाई बातें नहीं है बल्कि, साइंस डायरेक्ट ने भी जीईपी सूचकों पर रिसर्च कार्य को प्रकाशित करते हुए इंडिकेटर्स को स्वीकार कर लिया है। डॉ जोशी ने यह भी बताया कि इन इंडिकेटर्स को आधार मानते हुए   उत्तराखंड देश में पहला राज्य है जिसने GEP(Gross Environment Product_ सकल पर्यावरण उत्पाद) का मापन किया है।  वर्ष 2020_22 की समयावधि के लिए आंकड़ों का उपयोग करके उत्तराखंड राज्य ने अपने यहां सकल पर्यावरणीय उत्पाद के वृद्धि दर को 0.9 प्रतिशत बताया है।  डॉ जोशी ने कहा की GEP के 3 से 4 प्रतिशत की वृद्धि दर को बढ़िया कहा जा सकता है। डॉ जोशी अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहते है की अब समय आ गया है कि अलग अलग राज्यों के अलग स्टेक होल्डर्स तथा सरकारी वि