आर्काइव पोस्ट 01: भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की भूमिका-राहुल त्रिपाठी
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की भूमिका-राहुल त्रिपाठी
फ़ाइल चित्र: राहुल त्रिपाठी"खेती उत्तम काज है,
इहि सम और न होय।
खाबे को सबको मिलै,
खेती कीजे सोय।।"
अर्थात कृषि उत्तम कार्य है;इसके बराबर कोई दूसरा कार्य नहीं है; यह सबको भोजन देती है इसलिये कृषि करना चाहिये.भोजन जैसी मूलभूत आवश्यकता की पूर्ति करने वाली कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही है.रामायण,महाभारत, मौर्यकाल,मध्यकाल से होते हुए वर्तमान काल(वर्ष 2021तक) अनेकानेक बदलाव हुये। इन युग परिवर्तनकारी बदलाओं के बीच अगर कुछ स्थिर रहा है है तो वह कृषि ही है जो आज तक भारतीय का मुख्य आधार बनी हुई है.औपचारिक अर्थशास्त्र में किसी भी अर्थव्यवस्था को मोटे तौर पर तीन भागों में बांटा जाता है- प्राथमिक,द्वितीयक, तृतीयक.भारतीय अर्थव्यवस्था में भी ये तीन भाग पाए जाते हैं-प्राथमिक क्षेत्र कृषि का है; द्वितीयक क्षेत्र उद्योग का और तृतीयक क्षेत्र सेवा का.बिना प्राथमिक क्षेत्र के द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्र चल ही नहीं सकते.उदाहरण के लिए फर्नीचर के उद्योग को लकड़ी की आपूर्ति कृषि क्षेत्र के एक अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा वानिकी से प्राप्त होती है.उद्योग को लकड़ी बेचकर किसान धन प्राप्त करता है और पुनः इस धन से किसान पर्यटन जैसे सेवा की मांग कर सेवा क्षेत्र को बल प्रदान करता है.इसप्रकार हम कह सकते है कि प्राथमिक क्षेत्र के रूप में कृषि सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था का का आधार होती है.
भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण पहलू रोजगार का है.आजादी के समय लगभग 80 प्रतिशत रोजगार कृषि क्षेत्र में था. परंतु वर्तमान समय में कृषि क्षेत्र में रोजगार घटा है(सेवा और उद्योग क्षेत्र में अवसरों के बढ़ने के कारण)इसके बावजूद भी 50 प्रतिशत कार्यशील जनसंख्या प्रत्यक्ष रूप से और 65 प्रतिशत कार्यशील जनसंख्या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर ही निर्भर हैं.भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण पैमाना सकल घरेलू उत्पाद(GDP)है.आजादी के समय लगभग 60% जीडीपी कृषि से आती थी परंतु वर्तमान में लगभग 14%व (GDP) कृषि से आती है.अंतराष्ट्रीय व्यापार की दृष्टि से भारत आज गेहूं ,चावल ,फल, दूध चीनी आदि फसलों के संदर्भ में वैश्विक स्तर पर अग्रणी उत्पादक और निर्यातक देश बन चुका है.
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि के महत्व को W.T.O. (वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन) में चलने वाली वार्ताओं के संदर्भ में समझा जा सकता है. डब्ल्यूटीओ में कृषि सब्सिडी और कृषि व्यापार के मुद्दे पर दोहा दौर की वार्ता चली. सहमति अभी तक नहीं बन पाई है जिससे गतिरोध बना हुआ है और यदि इस गतिरोध को भविष्य में जल्दी सुलझाया नहीं गया तो विश्व व्यापार संगठन अप्रासंगिक हो सकता है.अन्य देशों की अर्थव्यवस्था विभिन्न संकटों के समय (जैसे 2008 में प्राइम लेंडिंग क्राइसिस) मंदी में चली जाती है. कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था को मंदी में नहीं जाने देती है.
वर्तमान कोरोना काल में जब अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्र नकारात्मक वृद्धि कर रहे थे( लॉकडाउन के कारण), भारतीय कृषि 2% से अधिक की सकारात्मक वृद्धि अर्जित कर रही थी.कृषि से जुड़े हुए विभिन्न त्योहार (पोंगल, बिहू, वैशाखी )आदि अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ाकर उसे मंदी में जाने ही नहीं देते. परंतु सब कुछ इतना गुलाबी गुलाबी-गुलाबी होता तो अदम गोंडवी को यह नहीं कहना पड़ता कि-
'तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है,
मगर यह आंकड़े झूठे हैं यह दावा किताबी है।'
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की भूमिका सीमित एवं उपेक्षित है. कृषि का सीमित होना विकास की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है (गुन्नार मिर्डल)परंतु, उपेक्षित होना स्वाभाविक नहीं है.वर्ष 2010 से 2020 के बीच 10,000 से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं हर लगभग हर औसतन ऋण के बोझ से दबा हुआ है, उत्पादकता अत्यंत निम्न स्तर पर (कुछ संदर्भ में तो घाना सुडान जैसे अल्पविकसित देशों से भी नीचे) है.सारी क्षेत्रों की प्रगति हुई किंतु कृषि की अवनति हुई है.किसान अपने बच्चे को किसान नहीं बनाना चाहता है.खेती आज युवाओं का एक निराश विकल्प बन चुका है.आखिर इतने सुंदर अतीत के बावजूद वर्तमान समय में भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र में प्रलय प्रवाह क्यों बन रहा है-
'कुछ तो मजबूरियां रही होंगी,
वरना यूं ही कोई बेवफा नहीं होता।'
कृषि की मजबूरियों पर गौर करें तो हम देखते हैं कि-
1.86 प्रतिशत सीमांत किसान हैं (दो हेक्टेयर से कम भूमि वाले) बिखरे छोटे छोटे खेत.
2.आज भी खेती में पुरानी तकनीकी का प्रयोग किया जाता है.
3.रसायनों का अत्यधिक प्रयोग जिससे भविष्य में जमीन अनुर्वर होगी
4.लगभग 40 सब खेती मॉनसून का निर्भर करती है, मानसून अनिश्चित - खेती अनिश्चित.
5.किसानों की रूढ़िवादी सोच विवाह आदि में कर्ज लेकर क्षमता से अधिक खर्च करना.
6. बाजार और उपभोक्ता से पहले बिचौलियों की लंबी कतार इससे किसान को अत्यंत कम दाम पर फसल बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है.
7. और दोषपूर्ण सब्सिडी नीतियां.
क्या यह मजबूरियां दूर नहीं हो सकती ऐसे मैं रामधारी सिंह दिनकर की कविता याद आती है-
'खम ठोंक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पांव उखड़।
मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है।।'
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की भूमिका को मजबूत बनाने के प्रयास युद्धस्तर पर जारी हैं, लैब टू लैंड, किसान कॉल सेंटर, किसान संपदा योजना, नेशनल एग्रीकल्चर मिशन, हाल ही में पारित 3 कृषि कानून, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना आदि प्रयासों का ठीक ढंग से कार्यान्वयन हो रहा है. इन प्रयासों से भारत विश्व का सर्वाधिक खाद्यान्न उत्पादन वाला देश बन चुका है.कृषि के मजबूत होने से भारत में सेवा और उद्योग क्षेत्र भी मजबूत हो रहे हैं जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की दस शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो रही है.
इस प्रकार कृषि ही वह महत्वपूर्ण क्षेत्र है जो भारतीय अर्थव्यवस्था को वही संतुलन देती है जिसकी कल्पना जयशंकर प्रसाद अपनी कामयानी के अंत में करते हैं-
'समरस थे जड़ या चेतन,सुंदर साकार बना था।
चेतनता एक विलसती, आनंद अखंड घना था।।'
सम्बद्धता एवम सम्पर्क:
राहुल त्रिपाठी,
वाणिज्य कर अधिकारी,
वाणिज्य कर विभाग,
उत्तर प्रदेश सरकार,
दूरभाष-7042383157
ईमेल-tripathilohit@gmail.com
पता-07/09/30
गांधी नगर नाका मुजफ्फरा अयोध्या (फैज़ाबाद)
पिन-224001
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