परियोजना कार्यों के लिए विश्लेषण रीतियों में समन्वय की आवश्यकता-अमित भूषण

शोध विधि कैसी होनी चाहिए?

अमित भूषण


केवल तर्कपूर्ण चिंतन को ही परम सत्य नहीं माना जा सकता क्योकि तर्कपूर्ण चिंतन भी पूर्वाग्रहों से मुक्त नहीं है। केवल संवेदनाओं पर आधारित चिंतन को भी परम् सत्य नही माना जा सकता है क्योकि वह भी पूर्वाग्रहों से मुक्त नहीं है। एक शोधवेत्ता के तौर पर हमें इन दोनों ही अतियों से बचना चाहिए। इन दोनों के बीच हमें कहीं एक समन्वय स्थापित करने की कोशिश करनी चाहिए। बहुधा, विशेषरूप से विश्लेषण की इन दोनो रीतियों को समाजिक विज्ञान में हम इस मध्यम मार्ग को व्यावहारिक मार्ग भी कहते है। यहीं मार्ग हमें भगवान बुद्ध भी सिखाये है। इस मार्ग में हम अपनी मानवीय संवेदनाओं को तर्क के आधार पर विश्लेषित करते है और फिर गुणात्मक/परिणात्मक विधियों का उपयोग  कर उसकी व्यवहारिकता और उपादेयता की जांच भी करते है।

वर्तमान समय में सामाजिक विज्ञान के सभी विषयों में इस शोध विधि का महत्व बढ़ा है। प्रोफेसर सेन इसी विधि का प्रयोग करते हुए यह कहते है कि न्याय का संबंध केवल तर्क तक ही सीमित नहीं है बल्कि, वास्तविक सामाज में न्याय का होते हुए दिखना भी उतना ही जरूरी है। इस शोध विधि ने तो अर्थशास्त्र के अंदर व्यावहारिक अर्थशास्त्र को जन्म देकर अर्थशास्त्र की मूल विधि(वैज्ञानिक विधि) की लोकप्रियता को बहुत कम कर दिया है।(एक पुराना पोस्ट)

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